1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

मलेरिया से निपटना टेढ़ी खीर

राम यादव२४ अप्रैल २००८

संयुक्त राष्ट्र संघ के आह्वान पर शुक्रवार 25 अप्रैल को, पहली बार, विश्व मलेरिया दिवस मनाया गया. उद्देश्य था, जनसाधारण को मलेरिया रोग के बढ़ते हुए ख़तरे से आगाह करना और उससे बचने के उपायों से से परिचित कराना.

https://p.dw.com/p/DtZ1
मलेरिया का एककोषीय रोगाणु
मलेरिया का एककोषीय रोगाणुतस्वीर: DW-TV

मलेरिया एक ऐसी संक्रामक बीमारी है, जो एनोफेलीस मादा मच्छर के काटने से होती है, जानलेवा साबित हो सकती है या मस्तिष्क को स्थायी नुकसान पहुँचा सकती है.

यह एक बहुत पुरानी बीमारी है. मिस्र की नील घाटी सभ्यता की और भारत की तीन हज़ार वर्ष पुरानी पंडुलिपियों में उसका उल्लेख मिलता है.

मलेरिया भारत और उसके पड़ोसी देशों सहित ऊष्ण जलवायु वाले संसार के लगभग सौ देशों में पाया जाता है. जलवायु परिवर्तन के साथ यह बीमारी अब ऐसे देशों में भी होने लगी है, जहाँ पहले नहीं होती थी.

27 लाख प्रणों की बलि

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ों के अनुसार संसार में हर वर्ष क़रीब 50 करोड़ लोग मलेरिया से पीड़ित होते हैं. 27 लाख रोगी जीवित नहीं बच पाते, जिनमें से आधे पाँच साल से कम के बच्चे होते हैं.

मच्छर मलेरिया के रोगाणु का केवल वाहक है. रोगाणु मच्छर के शरीर में एक परजीवी की तरह पलता है और मच्छर के काटने पर उसकी लार के साथ मनुष्य के शरीर में पहुँचता है. रोगाणु केवल एक कोषीय होता है. उसे प्लास्मोडियम कहते हैं.

मच्छर के दंश के साथ 10 से 15 प्लास्मोडियम रोगाणु शरीर में प्रवेश करते हैं. रक्त के साथ मिल कर पहले वे लाल रक्त कणों वाली कोषिकाओं और लिवर, यानी यकृत की कोषिकाओं में घुस कर अपने आप को पुष्ट करते और अपनी संख्या खूब बढ़ाते हैं.

उनकी संख्या- वृद्धि से लाल रक्त कणों वाली कोषिकाएँ और यकृत की कोषिकाएँ फटने लगती हैं. उनके फटने से मुक्त हुए रोगाणु नयी कोषिकाओं को अपना निशाना बनाते हैं.

शरीर इस स्थिति से निपटने के लिए बुख़ार के रूप में तापमान बढ़ा देता है और इस तरह, मलेरिया के रोगणुओं के हमले, लाल रक्तकण और यकृत की कोषिकाओं के फटने और हर बार नये बुख़ार का क्रम शुरू हो जाता है.

रोगी स्वयं किसी दूसरे व्यक्ति को मलेरिया की छूत नहीं लगा सकता. बीमारी के दौरान यदि उसे दुबारा किसी एनोफेलीस मादा मच्छर ने काटा, तो उसके द्वारा रोग का नया संक्रमण लगता है.

रोगाणु की क़िस्म के अनुसार मलेरिया के तीन मुख्य प्रकार हैं-- मलेरिया टर्शियाना, क्वार्टाना और ट्रोपिका. सबसे ख़तरनाक है मलेरिया ट्रोपिका, जो प्लास्मोडियम फ़ाल्सिपैरम नामक रोगाणु से फैलता है और भारत में भी बहुत व्यापक है.

तीन मुख्य प्रकार

मलेरिया का संक्रमण लगने और बीमारी उभरने में, रोगणु की क़िस्म के अनुसार, 7 से 40 दिन तक लग सकते हैं. आरंभिक लक्षण सर्दी-जुकाम या पेट की गड़बड़ी जैसे लग सकते हैं, जैसे सिर, शरीर और जोड़ों में दर्द, ठंड लग कर बुख़ार आना, नब्ज़ तेज़ हो जाना, उबकाई, उल्टी या पतले दस्त होना.

कहीं भरोसेमंद लक्षण हैं, हर तीन या चार दिन पर तेज़ी से बुख़ार चढ़ना, 3 से 5 घंटे बुख़ार रहना और फिर उतर जाना. इसी लिए मलेरिया को मियादी बुख़ार भी कहते हैं.

लेकिन, मलेरिया की सबसे ख़तरनाक़ क़िस्म मलेरिया ट्रोपिका में बुखार अनियमित समयों पर अचानक चढ़ने लगता है और कब तक रहेगा, यह भी निशचित नहीं रहता.

इसलिए बीमारी की सही पहचान केवल डॉक्टर ही कर सकता है और वह भी केवल रक्त-परीक्षा के आधार पर. अतः, सबसे सुरक्षित है तुरंत डॉक्टर के पास जाना.

टीका अभी तक नहीं बना

वर्षों से चल रही शोध के बावजूद मलेरिया की रोकथाम का अभी तक कोई टीका नहीं बन पाया है, हालांकि प्लास्मोडियम फ़ाल्सीपैरम रोगणु के जीनोम कोड को 2002 में ही पढ़ लिया गया है. ऐसे में मच्छरों को मारने और मच्छरों से बचने के साधन ही मलेरिया से भी बचने का एकमात्र उपाय हैं.

ऐसी कुछ गोलियाँ अवश्य हैं, जिन्हें लेने से मलेरिया होने की संभावना कम हो जाती है या वह बहुत ख़तरनाक रूप नहीं लेता, पर उन्हें केवल डॉक्टर ही लिख या दे सकता है. इन गोलियों के अवांछित उपप्रभाव भी हो सकते हैं.

मलेरिया के उपचार की दृष्टि से नयी बात यह है कि ब्राज़ील की एक कंपनी AS और MQ नाम की दो दवाओं को मिला कर ASMQ नाम की एक नयी गोली बाज़ार में उतार रही है, जिसका मूल्य ढाई डॉलर होगा और जो अब तक की सबसे प्रभावकारी दवा होगी. यह दवा संभवतः भारत में भी अगले वर्ष तक उपलब्ध हो जायेगी.