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भारत से समलैंगिकता के विअपराधीकरण की मांग

७ नवम्बर २००८

संयुक्त राष्ट्र ने भारत से समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने की अपील की है और कहा है कि इससे चीन और ब्राज़ील की तरह कार्यक्रम चलाकर एड्स का मुक़ाबला करने में मदद मिलेगी.

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दुनिया भर में हो रही है समलैंगिक अधिकारों की कोशिशतस्वीर: AP

एड्स पर संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के निदेशक जेफ़री ओमेली ने कहा है कि समलैंगिकों को भेदभाव से बचाने वाले देशों में एचआईवी से उनकी रक्षा का रिकॉर्ड बेहतर है.

भारत में एक अनुमान के अनुसार 25 लाख लोग एचआईवी संक्रमित हैं. असुरक्षित व्यावसायिक सेक्स से होने वाले नए संक्रमण के मामलों में कमी आई है. लेकिन ओमेली का कहना है कि ऐसे पुरुषों में जो पुरुषों के साथ सेक्स करते हैं, इसकी संख्या बढ़ रही है.

Symbolbild Kirche und Homosexualität
तस्वीर: www.relivision.com

ओमेली की टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब भारत में समलैंगिकता पर गरमागरम बहस हो रही है. हाइकोर्ट में इस समय सहमति के आधार पर समलैंगिक संबंध बनाने को अपराध के दायरे से बाहर रखने की मांग कर रहे समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं की याचिका पर विचार हो रहा है.

दिल्ली हाईकोर्ट ने इस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा है और याचिका का विरोध कर रही पार्टियों से सोमवार तक अपनी प्रतिक्रिया देने को कहा है. याचिका दायर करने वालों का तर्क है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत दी जाने वाली आजीवन कारावास तक के दंड का प्रावधान उनके मौलिक अधिकारों का हनन है.

हालांकि स्वास्थ्यमंत्री अंबुमणि रामदॉस भी समलैंगिकता क़ानून में परिवर्तन चाहते हैं लेकिन केंद्र ने याचिका का यह कहते हुए विरोध किया है कि इस प्रकार का व्यवहार अनैतिक है और भारतीय समाज में इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.

ओमेली का कहना है कि जिन देशों में समलैंगिकता ग़ैरक़ानूनी नहीं है वहां नए संक्रमण को रोकने में अधिक सफलता मिली है. चीन में पुरुष समलैंगिकता कभी अवैध नहीं थी, इसलिए वहां एचआईवी की रोकथाम के काम में कोई क़ानूनी बाधा नहीं है. ब्राज़ील में पुरुष और महिला समलैंगिकों को क़ानूनी दर्ज़ा दिए जाने के अलावा समलैंगिकता विरोधी भावना के ख़िलाफ़ अभियान भी चलाया जा रहा है.